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आम्ही लॉकडाऊन पीडित

मी सोनाली. एक सर्व सामन्य मुलगी. मराठी माध्यमात शिकलेली. खूप लहान वयात वाचनाची आवड जडली. पुस्तकं वाचणे, वृतपत्राचा आढावा घेणे, त्यावर सखोल चर्चा करणे, मग त्यावर आपल्याला नक्की काय वाटतं आहे आपलं नक्की काय मत आहे हे लिहायला लागले. हीच आवड वय आणि वेळेसोबत वाढतच गेली. वाचन हे विचारांना धार देत गेलं. स्वतःची स्वतंत्र्य मतं तयार होत गेली. मग ती व्यक्त करण्याची धडपड सुरु झाली. आपली मत मांडायची म्हटल तर ती अशीच कुठे ही मांडता येत नसतात हे खूप कमी वयात लक्षात आलं. त्यासाठी एक योग्य व्यासपीठ हवं हे ही समजलं. मग शाळेत असतानाच आपण एक लेखिका, कवयत्री, वक्ता, रेडिओ जॉकी, किंवा उत्तम वृत निवेदिका व्हावं असं वाटू लागलं. शाळेत असताना वर्गात कुणी विचारलं की मोठं झाल्यावर तुला काय व्हायचं आहे ? तर सर्वाची नेहमीची उत्तर ठरलेली असायची. डॉक्टर, वकील, इंजिनिअर, किंवा अंतराळवीर... मी मात्र दिमाखात सांगणार उत्तम लेखिका किंवा पत्रकार... काही तरी वेगळं उत्तर आलं की शिक्षकांना कौतुक वाटायचं. मलाला, सुहास शिरवळकर, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, महात्मा फुले, सावित्रीबाई फूले, ताराबाई शिंदे, बुद्ध, संत कबीर, संत तुकाराम म

स्वप्न की सत्य...!

    मी सोनाली. एक सर्व सामन्य मुलगी. मराठी माध्यमात शिकलेली. खूप लहान वयात वाचनाची आवड जडली. पुस्तकं वाचणे, वृतपत्राचा आढावा घेणे, त्यावर सखोल चर्चा करणे, मग त्यावर आपल्याला नक्की काय वाटतं आहे आपलं नक्की काय मत आहे हे लिहायला लागले. हीच आवड वय आणि वेळेसोबत वाढतच गेली. वाचन हे विचारांना धार देत गेलं. स्वतःची स्वतंत्र्य मतं तयार होत गेली. मग ती व्यक्त करण्याची धडपड सुरु झाली. आपली मत मांडायची म्हटल तर ती अशीच कुठे ही मांडता येत नसतात हे खूप कमी वयात लक्षात आलं. त्यासाठी एक योग्य व्यासपीठ हवं हे ही समजलं. मग शाळेत असतानाच आपण एक लेखिका, कवयत्री, वक्ता, रेडिओ जॉकी, किंवा उत्तम वृत निवेदिका व्हावं असं वाटू लागलं. शाळेत असताना वर्गात कुणी विचारलं की मोठं झाल्यावर तुला काय व्हायचं आहे ? तर सर्वाची नेहमीची उत्तर ठरलेली असायची. डॉक्टर, वकील, इंजिनिअर, किंवा अंतराळवीर... मी मात्र दिमाखात सांगणार उत्तम लेखिका किंवा पत्रकार... काही तरी वेगळं उत्तर आलं की शिक्षकांना कौतुक वाटायचं. मलाला, सुहास शिरवळकर, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, महात्मा फुले, सावित्रीबाई फूले, ताराबाई शिंदे, बुद्ध, संत कबीर, संत तुकार

कैसे लिखू और क्या लिखूं...?

कैसे लिखू और क्या लिखूं...? देखनेवालो की नजर लिखू या इस समाजका नजरिया लिखू ? बिगड़े हालात लिखू या बिगड़ती हर बात लिखू ? खुद कुछ कहु या सामने वाले कि कही हर बात लिखू ? बस... सोच रही हु क्या लिखू...?      सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग लिखू या इंस्टाग्राम की स्क्रॉलिंग लिखू ? मेरा ढलता दुप्पटा लिखू या दुप्पटा ना लेनेकी कहानी लिखू...? बस सोच रही हु क्या लिखूं..?      घर की खुशहाली लिखू या खुशहाली मैं ठहरा अकेलापन लिखू ? गंदी नजर से आयी झिझक लिखू या उसपर आये गुस्से को लिखू ? जो साथ है उसके बारे मैं लिखू या जो चला गया उसके यादोंको लिखू ? बस सोच रही हु क्या लिखू...?       खुद के सपनो को लिखू या बिखरते अपनोको लिखू ? अपने पराये का फर्क लिखू या अपनासा लगने वाला पराया शक्स लिखू ? सपनोवाली आज़ादी लिखू या मैं आज़ाद हु इस वहम को लिखू ? बस सोच रही हु क्या लिखू ?      टूटते बिखरते आसमाँ का वो सफर लिखू या जो गिरने पर मेरे पंखोको सेहेलाये वो हमसफ़र लिखू ? मेरी खाइशें लिखू या सबकी उम्मीदे लिखू या हसती सूरत की बिखरी हर कहानिया लिखू ? या कहानियों की दास्तान लिखू ? बस.... सोच रही हु क्या लिखू...?      रास्ते मैं घ

Strength of writing .... ✍

     What to say about writing and how much to say? No matter how much you say and write, its less. The art through which we express ourselves and often raise voice in a way that society never allows us to speak. In fact, many writers, poets, have written on many issues and faced many problems. And what are those issues? We know that very well...!       Everyone has an equal right to express what they think. Journalists express themselves through print and electronic media. And with the help of writing one can also represent all the problems of the people. Many people are also expressing their ideas through newspaper, magazine, quarterly and it is from this article that we are broadening our own knowledge.      Someone has really said that the edge of a sword and the power of a pen can never be equal. At a time when women were not allowed to read, write, or get an education for women's issues, many women writers came forward against the injustice done to them, including Tarabai Shi

आत्मविश्वास

कहानि है.. निहारिका की।  उसेके पति को इस दुनिया से जाकर आज पंधरा दिन हो गए थे। घर की सारी चेहेल पहल भी शांत हो चुकी थी। उसके ससुराल के मायके के सारे रिश्तेदार अन्त्यसंस्कार को 13 दिन पूरे होते ही चले गए थे। कब ये सब खत्म हो मानो जैसे वो इसी बात का इंतजार कर रहे हो। वरुण का ऐसे अचानक चले जाना इस बात के लिए उससे ही दोषी ठहराया जा रहा था। सारा को गोद मे लिए वो शांत सी गैलेरी मैं बैठी थी। उसे अब ये सारी जिंदगी खालीखालीसी लगने लगी थी। जैसे वो कही खो सी गई हो।  song  Door bel..... अचानक बजे डोरबेल के आवाज से वो होश मैं आई। दरवाजा खोला तो सामने छोटा देवर खड़ा था। भाभी काम के सिलसिले मैं पूना जा रहा हु। आपकी इजाजत हो तो गाड़ी लेकर जाऊ...? उसने दरवाजेमैं खड़े रहकर ही पूछा। उसने बिना कुछ कहे गाड़ी की चाबी देवर को देदी। जब उन्होंने एक्टिवा लि थी तब तो सारा का जन्म भी नही हुआ था। वो हमेशा कहा करते थे कि तूम भी स्कूटी चलना शिख लो। पर उनकी बाते सुनकर नेहा हमेशा कहती थी कि आप हो ना तो मुझे ये सीखनेकी क्या जरूरत है? फिर सारा का जन्म होने के बाद कार ली। पर नेहा को येसब सीखना पसंद नही था। उसने सोचा आज अग

हम क्या है ?

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हम क्या है ? ‌     हम क्या है ? जो लोगो को दिखाई देते है वो...! जो हम खुदको आईने मैं देखते है वो ? अगर समाज की बात करे तो आपका सुंदर होना बोहोत जरूरी है; और खास तौरपर तब जब आप एक लड़की हो तब । आप खुद सोचो आज विश्व मैं कितनी बड़ी इन्ड्रेस्ट्री है जो ब्यूटी प्रोडक्स का निर्माण करती है। आप इस बात का अन्दाजा रोज टीव्ही, सोशियल मीडिया, न्यूज़ पेपर पर आने वाले इश्तिहारोसे लगा सकते है।  ‌ क्या शरीर का या चेहरे का सुंदर होना ही सब कुछ है ? जब कोई लड़की मेकअप नही करती या ब्यूटी पार्लर जाना पंसंद नही करती तो लोग उसे अलग तरह से क्यों देखते हैं ? अगर ठीक से सोचे तो ज्यादातर लोगो में यही होड़ लगी होती है कि कैसे मैं ज्यादा खूबसूरत दिखु । पर हम यह भूल जाते है कि हम तो पहलेसे ही अच्छे दिखते है तो यह खुदको दुसरो से ज्यादा सुंदर बनने की यह मानसिकता आती कहासे है ?        मैं बताती हु। यह मानसिकता आती टीव्ही, टीव्ही सीरियल्स, और मूवीज से... जिस तरहसे परदे पर एक औरत की छबि को दिखाया जाता है वो हमारे समाज के सुंदरता का प्रमाण है। हर कोई उनके जैसा बनाने की कोशिश मैं लगा हुआ है। और फिर उनके जै

chay He & Me

   It is the custom of life that it does not allow anything to happen unnecessarily.  Whether it is someone's arrival or someone's leaving you and leaving, no matter is unnecessary.  Either you will be shattered or you will shine.  Either you will learn a lot because of that and even if it does not happen, then you will add some happy moments, people whom you will remember after a few years, then a slight smile will definitely come on your lips.        It happened with me too.  To be honest, I like tea a lot, so I always remember those friends whom I meet on the pretext of such tea.  A different bonding is formed with these friends.  I had a lot of conversations with such a friend over tea.  The moments spent together were all the best.  Then they went on their own way.  But someone has told the truth that after meeting for the first time, the desire to meet once again will never end on this earth.  We also felt that someday we will talk on the phone, otherwise someone will mes